समझने के लिए ये वीडियो जरूर देखिये।
This poem is an elegy written by Mathew Arnold for his father, Thomas Arnold.Mathew Arnold was an English poet and critic who worked as a school inspector. He was one of the best-known poets of the 19th century. In, this poem, Mathew Arnold describes the virtues of his father.
पहले छंद में कवि हमें आसपास के बारे में बताता है। यह शरद ऋतु की ठंडी और उदास शाम है। मैदान सूखे और पीले पत्तों से भरा हुआ है। चारों तरफ सन्नाटा है। स्कूल की खिड़कियों से रोशनी निकल रही है, फिर भी चारो ओर ठंड और अंधेरा है। इधर, रग्बी चैपल में कवि के पिता को दफनाया गया है। (चैपल---------- एक छोटा चर्च)
In the first stanza, the poet tells us about the surrounding. It is a cold and sad evening of autumn. The field is full of dry and yellow leaves. There is silence all around. light is coming out from the windows of the school, yet it seems dark and cold. Here, in Rugby Chapel, the poet's father has been buried. (Chapel---------- a small church)
कब्र
"उदास" प्रतीत
होती है। लेकिन यह शब्द कवि को उसके पिता की जीवन्तता की याद दिलाता है। जब उसके पिता जीवित थे, तब नवंबर
का अँधेरा भी उजाले भरा लगता था। उनकी मृत्यु को पन्द्रह वर्ष हो चुके हैंऔर परिवार उसकी अनुपस्थिति में अकेलापन महसूस करता है।
The grave seems "gloom" but the word reminds the poet about the radiance of his father. When his father was alive, even the dark November seemed bright. It has been fifteen years since he died. And the family feels alone in his absence.
कवि अपने पिता को याद करता है। बाद में कवि दार्शनिक हो जाता है। वह आश्चर्य करता है कि अपने जीवन के दौरान अधिकतम पुरुष क्या करते रहते हैं? कुछ पुरुष बस घूमते , और खाते-पीते रहते हैं। वे समुद्र की लहरों की तरह आते-जाते रहते हैं। इसलिए उन्हें उनकी मौत के बाद याद नहीं किया जाता है।
The poet recalls his father. later, the poet becomes philosophical. He wonders about what maximum men do in their course of life. Some men just roam around, eat, and drink. They come and go like the waves in the ocean. Therefore, they are not remembered after death.
लेकिन
कुछ और पुरुष भी होते हैं जिनमें जुनून होता है। वे एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। रास्ता बाधाओं से भरा और लंबा होता है। वे इस सफर पर दोस्तों के साथ चलना शुरू करते हैं। जब तूफान आता है तो वे अलग हो जाते हैं और कुछ लोग ही मंजिल तक पहुँच पाते हैं। लेकिन, उसके पिता की तरह कुछ लोग दूसरों को भी तूफान पार करने में मदद करते हैं। उसके पिता कभी नहीं दिखाते कि वह पीड़ित है। वह हमेशा खुश रहते थे और दूसरों की मदद करते थे।
It is because of his father that the poet starts to believe that there are great souls in the world who help others. These people are unlike ordinary people who make life look ugly. They are heroic and good, helpers of mankind. They are the sons of God. They knew the thoughts of God and helped others.
जैसे-जैसे मानवजाति इस परेशानी भरे संसार में आगे बढ़ती है, कुछ लोग प्यास और विपत्तियों से थक जाते हैं। वे बंट जाते हैं। वे चट्टानों में खो जाते हैं और अकेले मरने वाले होते हैं। ऐसे समय में उनके पिता जैसे देवदूत प्रकट होते हैं और उनकी मदद करते हैं। वे थके हुए या उदास नहीं हैं। वे थके हुओ को ऊर्जा देते हैं और मानव जाति को यात्रा पूरी करने में मदद करते हैं। वे सभी को एकजुट करते हैं और उन्हें ताकत देते हैं ताकि हर कोई नई आशा के साथ ऊर्जावान महसूस कर सके और अपने गंतव्य तक पहुंचने तक जारी रहे।
As
mankind marches on in this troublesome world, some become tired with thirst and
plagues. They get divided. They get lost in the rocks and are about to die
alone. At such times, angels like his father appear and help. They are not
tired or sad. They give out energy and help mankind complete the journey. They
unite everyone and give them strength so that everybody may feel energetic with
new hope and continue till they reach their destination.
1.
The autumn-evening. The field
Strewn with its dark yellow drifts
Of wither'd leaves, and the elms,
Fade into dimness apace,
Silent;—hardly a shout
From a few boys late at their play!
The lights come out in the street,
In the school-room windows;—but cold,
Solemn, unlighted, austere,
Through the gathering darkness, arise
The chapel-walls, in whose bound
Thou, my father! art laid.
strewn- अस्त व्यस्त, बिखरा हुआ, drifts- ढेर, elms - चिराबेल के पेड़, apace तेजी से, Solemn शान्त, austere – साधारण, bound चारदीवारी
कवि एक मैदान मैं शांत खड़ा है। कवि कहता है कि शरद ऋतु की ठण्डी व उदास शाम फैल रही है। सूखी और सड़ी हुई पत्तियों के पीले ढेरो के कारण मैदान अस्त व्यस्त है। बढ़ते अँधेरे के कारण चिरबेल के पेड़ तेजी से धुंधले होते जा रहे हैं। चारो ओर सन्नाटा है। शायद कुछ बच्चें इस समय खेल रहे हों, इस सन्नाटे में, शायद ही कभी कभार, उन्ही की आवाज सुनाई देती है। ऐसे अंधेरें में स्कूल की खिड़की से थोड़ी सी रोशनी बाहर गली में आ रही हैं परन्तु वह भी शान्त, उदास, बेरोशन सी है। इस रोशनी से इस वातावरण में ऊर्जा का संचार नहीं हो पा रहा है। कवि कहता है कि इस वातावरण में चारों ओर अँधेरा फैला हुआ है। जैसे जैसे कवि आगे बढ़ता है उसे इसी अंधेरे के बीच से चैपल (गिरिजाघर) की दीवारें उभरती हुई दिख रही हैं। कवि को याद आता है कि इन्ही दीवारों के उस पार चारदीवारी में उसके पिता को दफनाया गया था, अर्थात उसके पिता की समाधि इसी चैपल के अंदर है।
The
poet is standing quietly in a field. The poet says that the cold and gloomy
evening of autumn is spreading. The field is disturbed due to yellow piles of
dry and rotten leaves. Oak trees are becoming increasingly dim due to
increasing darkness. There is silence all around. Perhaps some children are
playing at this time, in this silence, rarely, their voice is heard. In such
darkness, a little light is coming out of the school window into the street,
but that too is silent, sad, unlighted. Due to this light, energy is not being
transmitted in this environment. The poet says that there is darkness all
around in this environment. As the poet moves forward, he sees the walls of the
chapel emerging from the midst of this darkness. The poet remembers that his
father was buried in the boundary wall across these walls, that is, his
father's tomb is inside this chapel.
2.
There thou dost lie, in the gloom
Of the autumn evening. But ah!
That word, gloom, to my mind
Brings thee back, in the light
Of thy radiant vigour, again;
In the gloom of November we pass'd
Days not dark at thy side;
Seasons impair'd not the ray
Of thy buoyant cheerfulness clear.
Gloom- उदास, autumn - शरद ऋतु, thee तुम!
तुम्हें, thy- तुम्हारी / तुम्हारे, radiant – प्रसन्नचित्त, vigour – ऊर्जा/ उत्साह,
impaired- क्षीण/ कमजोर,
cheerfulness- प्रसन्नता
इस शरद ऋतु की उदास शाम में कवि भी उदास है , वह कहता है कि उसके पिता चैपल की चारदीवारी में लेटे हुए, दफन है। इस समय वातावरण के साथ यह शाम भी ठंडी, उदास व शान्त है। यह उदासी, उसे उसके पिता की याद दिलाती है।कवि कहता है कि उसके पिता एक प्रसन्नचित व्यक्ति थे। उनके साथ रहते हुए उसने कभी भी अपने को उदास नहीं पाया था। वह कहता है कि उसके पिता के प्रसन्नचित व उत्साही स्वभाव वाले व्यक्तित्व की छाया में वह कभी उदास नहीं रहता था। उनके साथ रहते हुए शरद ऋतु की उदासी में भी कवि के दिन कभी उदास नही रहते थे। वह कहता है कि कोई भी मौसम या परिस्थिति उसके पिता की प्रसन्नता ओर जिंदादिली को कमजोर नहीं कर सकती थी। उनकी जिन्दादिली पर कोई भी परिस्थिति विपरीत असर नहीं डाल सकती थी। उनका प्रसन्नचित स्वभाव एक अंधेरे व उदास वातावरण में ऊर्जायुक्त प्रकाश की किरण की भाँति था।
On the gloomy evening of this autumn, the poet is also sad, he says that his father is buried, lying in the wall of the chapel. At this time, along with the atmosphere, this evening is also cold, gloomy, and calm. This sadness reminds him of his father. The poet says that his father was a happy man. He had never found himself sad while living with them. He says that he was never depressed under the shadow of his father's cheerful and cheerful personality. Living with him, the poet's days were never sad even in the gloom of autumn. He says that no weather (or circumstance) could dampen his father's happiness and vivacity. No circumstance could adversely affect his life. His happy nature was like a ray of energized light in a dark and gloomy environment.
3.
Such thou wast! and I stand
In the autumn evening, and think
Of bygone autumns with thee.
Fifteen years have gone round
Since thou arosest to tread,
In the summer-morning, the road
Of death, at a call unforeseen,
Sudden.
Bygone- बीते
हुए, arouses- उठना
tread -चलना, unforeseen- अप्रत्याशित
कवि शरद ऋतु की शान्त व उदास शाम को एक गिरिजाघर के पास से गुजरता है कि तो उसे अपने पिता के प्रसन्नचित एवं ऊर्जावान व्यक्तित्व की याद आती है जिनके साथ रहते हुए उसे उदास व प्रतिकलू वातावरण भी सुहाना लगता था। कवि कहता है कि उनके प्रसन्नचित स्वभाव पर किसी भी विपरीत मौसम या परिस्थिति का बुरा असर नहीं पड़ता था। आज वह यहाँ शरद ऋतु (पतझड़) की शाम को एक मैदान में खड़ा हुआ है और अपने पिता के साथ बिताये गये शरद ऋतु के दिनों को याद कर रहा है जो की बहुत ही सुहावने
हुआ करते थे। वह कहता पन्द्रह साल बीत चुके हैं जब अपने उसके पिता एक दिन सुबह चलने के लिए उठे थे। गर्मी की एक सुबह कवि के पिता उठे और ईश्वर के एक अप्रत्याशित बुलावे पर वे मृत्यु की राह पर चल पड़े, अचानक ही।
The
poet passes by a cathedral on a quiet and gloomy autumn evening when he
remembers the cheerful and energetic personality of his father, with whom he
used to enjoy the gloomy and unfavorable atmosphere while living with him. The
poet says that his happy nature was not affected by any adverse weather or
circumstance. Today he is standing here in a field on the evening of autumn and
reminiscing the autumn days he spent with his father which used to be very
pleasant. He says that fifteen years have passed since his father got up one
morning to walk. One summer morning the poet's father got up and at an
unexpected call from God, he set off on the road to death, all of a sudden.
4.
For fifteen years,
We who till then in thy shade
Rested as under the boughs
Of a mighty oak, have endured
Sunshine and rain as we might,
Bare, unshaded, alone,
Lacking the shelter of thee.
boughs
– शाखाँए, Oak- शाहबतूल का पेड़ (ओक), endured - सहना / चलना,
unshaded-अनाच्छादित/बिना छत के ।
कवि कहता है कि वह अपने पिता के संरक्षण में बहुत ही प्रसन्नतापूर्वक रहता था। पन्द्रह साल पहले उसके पिता उन्हें अकेला छोड़ कर इस दुनिया से चले गये थे। बिना पिता के बिना ये पन्द्रह वर्ष बहुत ही कठिनाई से बीतें हैं । ये पन्द्रह वर्ष कवि के लिये बड़े कठिनाई भरे रहे हैं । कवि कहता है कि बिना पिता के, वह असुरक्षित है। पिता की मृत्यु के बाद वह तथा उसके जैसे अनन्य लोग भी असुरक्षित हो गये है। उसके पिता एक विशाल ओक (शाहबतूल)
के घने वृक्ष की तरह थे। वे सभी को धूप व वर्षा ( कठिन एवं विपरीत परिस्थितियों) से बचाते थे । पन्तु उनके जाने के बाद अब वे सभी पन्द्रह सालों से कड़ी धूप व वर्षा ( विषम परिस्थितियों ) को सहन करने के लिये विवश है। अब उन्हें आश्रय देने के लिये के लिये कोई भी (ओक के वृक्ष के समान) नहीं है। वे जिन्दगी की कठिनाइयों को पन्द्रह साल से सहन कर रहे हैं। कवि अपने पिता के चले जाने से बहुत हीआहत है।
The
poet says that he lived very happily under the protection of his father.
Fifteen years ago his father had left this world leaving him alone. Fifteen
years have passed with great difficulty without his father. These fifteen years
have been very really tough for the poet. The poet says that without a father,
he is insecure. After the death of his father, he and his unique people like
him have also become insecure. His father was like a dense tree of a huge Oak
(shahbatul). He protected everyone from sun and rain (difficult and adverse
conditions). But after his departure, now they are all forced to bear the harsh
sun and rain (unfortunate conditions) for fifteen years. Now there is no one
(like an oak tree) to shelter them. He has been enduring the hardships of life
for fifteen years. The poet is deeply hurt by the passing of his father.
5.
O strong soul, by what shore
Tarriest thou now? For that force,
Surely, has not been left vain!
Somewhere, surely afar,
In the sounding labour-house vast
Of being, is practised that strength,
Zealous, beneficent, firm!
Yes, in some far-shining sphere,
Conscious or not of the past,
Still thou performest the word
Of the Spirit in whom thou dost live—
shore
– किनारा, tarriest- ठहरना/ रुकना, Vain बेकार होना, afar -बहुत दूर तक, strength - शक्ति, Zealous – उत्साह, beneficed- उपयोगी, sphere- ग्रह, Conscious – सचेत, spirit -(यहाँ) भवावान
कवि के पिता पन्द्रह वर्ष पहले उसे बेसहारा छोड़ कर मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। कवि को आश्चर्य है उसके पिता की सद्चरित व ओजपूर्ण आत्मा मृत्यु के बाद कहाँ होगी। वह सोचता है कि वह कौन सा ग्रह होगा और कहाँ होगा जहाँ उसके पिता की आत्मा अब रहती है? उसे यकीन है कि उसके पिता की कर्मठ ऊर्जा बेकार नहीं हो सकती। क्योंकि उसके पिता ने इस धरती पर हमेशा पूरी इमानदारी से भगवान के आदेशानुसार कार्य किया है। अतः निश्चित रूप से ईश्वर उनकी विशेषताओं का उपयोग किसी उद्देश्य के लिये करेगा| उसके पिता अपनी शक्तियों जैसे उत्साह, दयालुता, उदारता, दृढ़ निश्चय, सहानुभूति आदि का उपयोग उन प्राणियों (जो वहां आस पास रहते होगें) की सहायता के लिये कर रहे होंगे जो मेहनत करने के बावजूद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। वह सोचता है कि उसके पिता इस संसार में उनकी सासारिक भूमिका को भूल चुके होंगे, लेकिन उसे पूर्ण विश्वास है कि वे ईश्वर की इच्छा को पूर्ण करने के लिये किसी चमकते हुए ग्रह पर कार्यरत होंगें ।
The
poet's father had died fifteen years ago leaving him destitute. The poet
wonders where his father's virtuous and powerful soul will be after death. He wonders
which planet will be where his father's soul now resides and where will that
planet be. She is sure that her father's hard work cannot be wasted. Because
his father has always acted on this earth with complete sincerity, so surely
God will use his attributes for some purpose. His father must be using his
powers like enthusiasm, kindness, generosity, strong determination, sympathy,
etc. to help the creatures (who live there nearby) who are unable to achieve
their goals even after working hard. He thinks that his father may have
forgotten his earthly role in this world, but he is confident that he will be
working on some shining planet to fulfill the will of God.
6.
Prompt, unwearied, as here!
Still thou upraisest with zeal
The humble good from the ground,
Sternly repressest the bad!
Still, like a trumpet, dost rouse
Those who with half-open eyes
Tread the border-land dim
'Twixt vice and virtue; reviv'st,
Succourest!—this was thy work,
This was thy life upon earth.
prompt–फुर्तिला/तत्पर, unwearied-खुशहाल//उर्जावान unpraisest-हतोत्साहित, Zeal-उत्साह, sternly-दृढ़ता पूर्वक, repressest–दबाना/कुचलना, trumpt- तुरही, tread-चलना, twixt-बीच में, vice-पाप/बुराई, virtue-पुण्य, reviv’st-पुनः जीवित करना, Succourest - सहायता पहुँचाना।
दुखी व उदास कवि अपने पन्द्रह साल पहले संसार से विदा हुए पिता की अच्छाइयों को याद करता है। उसे विश्वास है कि मृत्यु उपरान्त भी वे उसी प्रकार कार्यशील रहते होंगे और इस जीवन की ही तरह सभी की सहायता और संरक्षण करते होंगे। वे अभी भी कमजोर व्यक्तियों की उन्नति के लिए कार्य कर रहे होगे। दूसरी ओर वे ढृढ़तापूर्वक दुष्ट व बुरे लोगों को कुचलने का कार्य कर रहे होगें। साथ ही साथ वे विन्रम व्यक्तियों में साहस भर रहे होंगें। उनकी आवाज़ एक तरह की तुरही जैसी है जो सोये हुओ को भी जगा देती है। अपनी बुलंद आवाज़ से वे व्यक्तियों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक कर रहें होंगें। उनकी आवाज़ से वे व्यक्ति भी जग रहे होंगें जो आधी खुली आँखों से पाप और पुण्य के बीच की एक सँकरी पटरी पर चल रहे होंगें। उन व्यक्तियों को पाप और पुण्य के प्रति जागरूक करने का बीड़ा उसके पिता जी उठा रखा होगा। वह उन व्यक्तियों में नयी आशा का संचार कर रहे होंगें जो चाह कर भी गुणवान नहीं बन सकते। उसके पिता ऐसे लोगो को अपने मार्गदर्शन और सहानुभूति से शक्तिशाली बना रहे होंगें और अपने कर्तव्य निभा रहे होंगें। उन्होंने इस पृथ्वी पर इसी तरह का जीवन जिया है।
The
sad poet remembers the goodness of his father who had departed from the world
fifteen years ago. He is sure that even after death, they will continue to
function in the same way. The poet says that his father, like in this life,
must have helped and protected all. They will still be working for the
upliftment of the weak persons. On the other hand, they will be resolutely
working to crush the evil people. At the same time, they must be filling
courage in humble people. His voice is like a trumpet that wakes up even the
sleeping ones. With their loud voice, they must be making people aware of their
duties. His voice must have awakened even those people who, with half-open
eyes, would be walking on a narrow path between sin and virtue. His father
would have taken the initiative to make those people aware of sin and virtue.
He must have been infusing new hope in those people who cannot become virtuous
even if they want to. His father must be making such people powerful with his
guidance and sympathy. The poet is sure that his father would be performing his
duty in the same way. He has lived this kind of life on this earth.
7.
What is the course of the life
Of mortal men on the earth? —
Most men eddy about
Here and there—eat and drink,
Chatter and love and hate,
Gather and squander, are raised
Aloft, are hurl'd in the dust,
Striving blindly, achieving
Nothing; and then they die—
Perish; —and no one asks
Who or what they have been,
More than he asks what waves,
In the moonlit solitudes mild
Of the midmost Ocean, have swell'd,
Foam'd for a moment, and gone.
mortal-
नश्वर, eddy- भँवर
में फसना, Chatter - बातचीत करना, Squarter- गँवाना/खो देना, Aloft- ऊपर,
hurl’d-चिल्लाना, striving - प्रयास,
Perish खत्म होना/सड़ना, - Solitudes - अकेला
पन ।
कवि विचार करता है कि ज्यादातर लोग किस तरह से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वे लक्ष्यहीन होते है और केवल यहाँ और वहाँ घूमते रहते हैं। वे अपना अधिकतर समय खाने, पीने, कमाने, एक दूसरे से प्यार करने और नफरत करने, सामाजिक पदों पर रहने और अपनी प्रतिष्ठा खोने में बर्बाद करते हैं। वे बहुत प्रयास करते हैं परन्तु वे अपने जीवन के लक्ष्य
का पता नहीं लगा पाते और अंत में, वे मर जाते हैं। संसार में उनकी कोई भी पहचान नहीं रहती। उनके चले जाने के बाद, कोई भी यह जानना नहीं चाहता कि वे कौन थे। जैसे
कि कोई भी समुद्र में उठने वाली लहरों के बारे में कुछ नहीं पूछता है, वे ऊपर उठती हैं, झाग बनाती है और गायब हो जाती है। ऐसे लोग अपने आसपास के जीवन पर एक स्थायी छाप नहीं छोड़ते हैं। मरते ही लोग उन्हें भूल जाते है। अधिकाँश लोग ऐसा ही जीवन जीतें है।
The poet ponders how most people lead their lives. They are aimless and just move around here and there. They waste most of their time eating, drinking, earning, loving and hating each other, holding social positions, and losing their reputation. They try a lot but they do not find the goal of their life and in the end, they die. The world doesn't have any identity for them. After they are gone, no one wants to know who they were. As if no one asks anything about the waves in the ocean, they rise, foam, and disappear. Such people do not leave a lasting impression on the life around them. People forget them as soon as they die.
8.
And there are some, whom a thirst
Ardent, unquenchable, fires,
Not with the crowd to be spent,
Not without aim to go round
In an eddy of purposeless dust,
Effort unmeaning and vain.
Ah yes! some of us strive
Not without action to die
Fruitless, but something to snatch
From dull oblivion, nor all
Glut the devouring grave!
Thirst-
प्यास, ardent- उत्साही, unquenchable- अतृप्त, eddy- भंवर,
strive - प्रयास करते हैं, fruitless – निरर्थक, snatch- छीनना, oblivion- विस्मरण,
glut- तृप्त करना,
devouring- भक्षण, grave- कब्र ।
कवि को अपने पिता की ही तरह के व्यक्तियों की उपस्थिति का भी आभास होता है। वह कहता है कि दुनिया में कुछ लोग हैं जो एक प्यास, एक तीव्र इच्छा से प्रेरित होते हैं; जो आम आदमी की तरह भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहते। वे एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए प्रेरित होते हैं और दुसरो को भी करते हैं। यह इच्छा इतनी प्रबल होती है कि इसे बुझाया/नष्ट नहीं किया जा सकता। ऐसे लोगों को अपने जीवन को उस धूल की तरह बिताने की कोई इच्छा नहीं होती है जो हवा के झोंके से हिलने पर गोल गोल घूमती है। वे एक ऐसा उद्देश्यहीन जीवन बिताना नहीं चाहते हैं जो कि न तो कुछ हासिल कर सके और न ही किसी को याद रह सके। ऐसे लोग मरने से पहले कुछ उत्कृष्ट कार्यों को करने के लिए बहुत प्रयास करते हैं। वे कुछ अच्छा और महत्वपूर्ण करने से पहले इस दुनिया को छोड़ना नहीं चाहते हैं। वे नहीं चाहते की उनके मरते ही लोग उन्हें भूल जाये। वे दुनिया पर एक अमिट छाप छोड़ना चाहते हैं। उन्हें लगता है किउनका जीवन इसलिए नहीं है की उससे केवल कब्र की भयानक भूख को शांत किया जाये। ऐसा लगता है कि लोग केवल इसलिए जीते हैं ताकि वे मर जाएं और इस तरह कब्र की एक मृत शरीर को पाने की लालसा को पूरा कर सकें। वे जीवन को सार्थक करना चाहते हैं।
The
poet has now become a philosopher. He also senses the presence of people like
his father. He says that some people in the world are driven by thirst, a
strong desire, who do not want to be part of the crowd like the common man.
They are inspired to lead a dignified life and so do others. This desire is so
strong that it cannot be extinguished or destroyed. Such people have no desire
to spend their lives like the dust that moves round and round when shaken by
the gust of wind. They do not want to lead a purposeless life that can neither
achieve nor remember anyone. On the contrary, some people put a lot of effort
to do some excellent work before they die. They don't want to leave this world
before doing something good and important. They do not want people to forget
them as soon as they die. They want to leave an indelible mark on the world.
They feel that their life is not meant only to satisfy the terrible hunger of the
grave. It seems that people live only so that they can die and thus satisfy the
longing of the grave to have a dead body. They want to make life worthwhile.
9.
We, we have chosen our path—
Path to a clear-purposed goal,
Path of advance!—but it leads
A long, steep journey, through sunk
Gorges, o'er mountains in snow.
Cheerful, with friends, we set forth—
Then on the height, comes the storm.
Thunder crashes from rock
To rock, the cataracts reply,
Lightnings dazzle our eyes.
Path
of advance- उन्नति का मार्ग, steep journey- कठिन यात्रा, sunk gorges - धँसी हुई घाटियाँ, set forth- प्रस्थान करना, storm- आँधी, cataract- बड़ा झरना,
dazzle- चकाचौंध
कवि कहता है कि जीवन में हम सभी अपना रास्ता चुनते हैं जोकि सीधे, हमारे द्वारा सोच समझ कर निश्चित की गई मंज़िल तक जाता है। यह रास्ता उन्नति का होता है और एक निश्चित लक्ष्य की ओर जाता है। परन्तु स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाला यह रास्ता एक लम्बी और उबड़खाबड़ यात्रा है जो गहरी, पथरीली घटियों और बर्फ के पहाड़ों के ऊपर से हो कर जाता है । कवि कहता है कि उन्होंने जीवन में एक कठिन रास्ता चुना है जोकि पुण्य और अच्छाई का मार्ग है और जिसका लक्ष्य स्वर्ग पाना है। कवि कहता है कि ऐसे लोग प्रसन्नतापूर्वक स्वर्ग की ओर जाने वाले वाले रस्ते पर अपने दोस्तों के साथ निकल पड़ते हैं लेकिन वे कई कठिनाइयों में घिर जातें हैं। ऊपर की ओर चलते हुए अचानक तूफान आ जाता है, तेज बिजली कड़कती है और पहाड़ों से टकराकर तेज गड़गड़ाहट की आवाज़ उत्पन्न होती है; इसी के साथ, तेज़ धाराएँ अपना रास्ता तोड़ देती हैं। तेज रौशनी से आँखें चौंधियाँ जाती है।
The
poet says that we all choose our paths in life. We all set a goal in our life.
That path leads directly to the destination decided by our thinking. All people
who have a purpose in life choose their path. This route is a long and rough
journey that passes through deep, rocky gorges and snowy mountains, but this
path leads to a definite goal. They can see it clearly. The poet says that he
has chosen a difficult path in life, the path of virtue and goodness, whose
goal is to attain heaven. The poet says that such people happily go out with
their friends on the road leading to heaven, but they run into many difficulties.
On the way up, there was a sudden storm, there was a flash of strong lightning,
and the sound of thunder would be produced by hitting the mountains;
Simultaneously, strong currents break their path. The eyes are dazzled by
bright light.
10.
Roaring torrents have breach'd
The track, the stream-bed descends
In the place where the wayfarer once
Planted his footstep—the spray
Boils o'er its borders! aloft
The unseen snow-beds dislodge
Their hanging ruin; alas,
Havoc is made in our train!
Friends, who set forth at our side,
Falter, are lost in the storm.
We, we only are left!
With frowning foreheads, with lips
Sternly compress'd, we strain on.
Torrent-मूसलाधार-वर्षा, breach’d-तोड़ना,
descends-नीचे उतरना,
wayfarer- पैदल-यात्री,
aloft-ऊपर की ओर, dislodge-पूर्व स्थान से हटना, Havoc-तबाही, train- दल, Falter-लड़खड़ाना, frowning -त्योरी चढ़ा हुआ, Sternly- दृढ़ता ।
भारी गर्जन के साथ मूसलाधार बारिश रास्तों में दरार डाल देती है। जिस स्थान पर पैदल यात्रियों ने अपने पैर जमाये थे उस स्थान से पानी की धरा बहने लगती है। साथ ही साथ पानी की एक बड़ी सी फुहार इस रस्ते पर उफान लेकर आ जाती है। ऊपर की ओर से बर्फ की चट्टानें खिसकने लगती हैं। कवी कहता है की हमारी यात्रा पर भरी तबाही छा जाती है। हर और तबाही के निशान है। ये एक दुर्गम यात्रा बन जाती है। कवि कहता है कि लोगो ने जीवन लक्ष्यों को लेकर मंज़िल पर पहुँचने के लिए जिस रास्ते को चुना था, उस रास्ते पर चलते हुए उनके दल (समूह) पर अचानक तूफान के रूप में मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। लोग इस तूफ़ान में खो जाते है। कवि अपनी बात को स्पष्ट करता है कि इसी प्रकार जो लोग हमारे साथ जीवन की यात्रा शुरू करते हैं वे जीवन की परेशानियों में खो जाते हैं और सफलता पाने की कोशिश छोड़ देते हैं। अब केवल कुछ ही लोग बच जाते है जो कि बहुत ही थके हुए प्रतीत होते है -उनकी त्योरियाँ चढ़ी हुई और होंठ दृढ़ता से भींचे हुए होते हैं। कवि कहता है कि सभी ने यहाँ तक की यात्रा में बहुत नुकसान उठाया है।
The
torrential rain accompanied by heavy thunder breaks the roads. A stream of
water starts flowing from the place where the pedestrians had set their feet.
Simultaneously, a big splash of water brings a boom on this road. The ice
cliffs start sliding from the top. The poet says that our journey is full of
devastation. Everything else is a mark of destruction. It becomes a difficult
journey. The poet says that suddenly troubles (in the form of storms) come on
the path people had chosen to reach the destination with life goals. People get
lost in this storm. The poet makes his point clear that in the same way those
who start the journey of life with us get lost in the troubles of life and give
up trying to get success. Now, only a few survive who appear to be very tired -
their frowns raised and lips firmly clenched. The poet says that everyone has
suffered a lot in this journey.
11.
On—and at nightfall at last
Come to the end of our way,
To the lonely inn 'mid the rocks;
Where the gaunt and taciturn host
Stands on the threshold, the wind
Shaking his thin white hairs—
Holds his lantern to scan
Our storm-beat figures, and asks:
Whom in our party we bring?
Whom we have left in the snow?
nightfall- सांझ, inn- सराय, gaunt and taciturn- कमजोर और मौन, threshold- दहलीज, storm-beat figures- तूफान से थके हुए यात्री।
कवि का कहता है कि अंत में ,रास्ते की सभी कठिनाइयों का सामना करने के बाद रात्रि के समय यात्री अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं- जहाँ उनका लम्बा सफर समाप्त होता है। चट्टानों के बीच में उन्हें एक अकेला सराय दिखाई पड़ता है। सराय की दहलीज पर लंबा, पतला और कमजोर सा मेजबान खड़ा है जिसके पतले सफ़ेद बाल हवा में उड़ रहे थे। वह अपनी लालटेन को ऊँचा करके तूफान से थके हुए यात्रियों के चेहरों का अध्ययन करता है और उनसे पूछता है कि उनके दल में वे कितने लोगो को साथ लाये है और कितने लोगो को बर्फ में पीछे छोड़ आये हैं?
The
poet says that in the end, after facing all the difficulties of the way, at
night the travelers reach their destination – where their long journey ends. In
the middle of the rocks, they see a lonely inn. On the threshold of the inn
stands a tall, thin and weak host whose thin white hairs were blown in the
wind. He holds up his lantern and studies the faces of the storm-weary
travelers and asks them how many people they have brought along in their crew
and how many people they have left behind in the snow.
12.
Sadly, we answer: We bring
Only ourselves! we lost
Sight of the rest in the storm.
Hardly ourselves we fought through,
Stripp'd, without friends, as we are.
Friends, companions, and train,
The avalanche swept from our side.
But thou woulds't not alone
Be saved, my father! alone
Conquer and come to thy goal,
Leaving the rest in the wild.
Stripp’d-
वंचित करना,
avalanche –हिमस्खलन, Conquer- विजयी ।
यात्री दुखी
होकर कहते हैं कि केवल वे ही आए हैं परन्तु बिना दोस्तों के-खाली हाथ। उनके साथी बर्फ में कहीं पीछे छूट गएँ। वे
दूसरों की मदद नहीं कर सके। भयावह बाधाओं और महान पीड़ा के कारण, उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुँचने में बहुत कठिनाई हुई। कवि कहता है की वहाँ
पहुँच कर भी वे दुखी हैं- क्योंकि वे स्वयं तो किसी तरह वँहा पहुँच गए परन्तु उनके
मित्र,
साथ के लोग और उनका दाल -सभी कुछ -उस तूफान में उनसे बिछुड़
गए।
कवि कहता है कि
हम सभी ने सिर्फ अपने को बचाया परन्तु उसके पिता केवल खुद को बचाने से संतुष्ट
नहीं थे। उन्होंने दूसरों को भी बचाया और इस प्रकार वे विजयी हुए। उनके इसी
व्यवहार के कारण केवल उसके पिता ही अपने लक्ष्य यानी स्वर्ग तक पहुँचे जबकि अन्य
सभी अपनी मंज़िल को न पा सके।
Travelers
sadly say that only they have come but without friends - empty-handed. His
companions were left behind somewhere in the snow. They could not help others.
Due to horrific obstacles and great suffering, he had great difficulty in
reaching his goal. The poet says that even after reaching there, he is sad - because
he somehow reached there but his friends, his companions, and his pulse - all
of them - were separated from him in that storm.
The
poet says that we all saved only ourselves but his father was not satisfied
with only saving himself. He also saved others. Due to this behavior of his
only his father reached his goal i.e. heaven while all others could not achieve
their destination.
13.
We were weary, and we
Fearful, and we in our march
Fain to drop down and to die.
Still thou turnedst, and still
Beckonedst the trembler, and still
Gavest the weary thy hand.
If, in the paths of the world,
Stones might have wounded thy feet,
Toil or dejection have tried
Thy spirit, of that we saw
Nothing—to us thou wage still
Cheerful, and helpful, and firm!
Weary-थका, Fain- इच्छुक, turnedst- पीछे मुड़ गए, Beckonedst- संकेत करना, trembler- घबराना, Gavest- देना, wounded -घायल किया, Toil- कठिन परिश्रम, dejection- उदासी, wage- संचालन।
अपनी इस लम्बी
थकन भरी यात्रा के दौरान उनमें से कुछ लोग थक गए और डर गए। कठिनाइयों को देखते हुए
वे, ख़ुशी से, पिछड़ने और यहाँ तक कि मरने के लिए भी तैयार थे। इसके बावजूद भी उसके पिता ने घबराये हुए लोगो को इशारा किया और मदद के लिए पीछे मुड़ गए। उन्होंने कमजोर और
थके हुए लोगों की मदद करने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाया। अपने पिता की प्रशंसा करते
हुए कवि कहता है कि उसके पिता ने किसी दुःख को प्रकट किये बिना जीवन की कठिनाइयों
का सामना किया। यदि वह कभी अपनी जीवन यात्रा में पीड़ित भी हुए तो भी उन्होंने कभी
इसका प्रदर्शन नहीं किया। यदि कभी पत्थरों ने उनके पैरों को घायल किया, या कठिन परिश्रम या उदासी ने उनको बुरी तरह थका दिया तो भी कवि ने कभी इस तरह
के दुःखों के निशान उनके चेहरे पर नहीं देखे थे। लोगो को संचालन के लिए उनके पिता
हमेशा हंसमुख,
आशावादी ओर मजबूत थे।
Some
of them got tired and scared during their long exhausting journey. Seeing the
hardships they were, happily, ready to fall behind and even die. Despite this,
his father turned back to offer his hand to the victim for help. He extended
his hand to help the weak and tired.
While
praising his father, the poet says that his father faced the difficulties of
life without showing any sign of sorrow. Even if he ever suffered in his life
journey, he never demonstrated it. Even if the stones injured his feet, or the
hard labor or sadness made him terribly tired, the poet had never seen such
sorrows on his face. His father was always cheerful, optimistic, and strong.
14.
Therefore to thee it was given
Many to save with thyself;
And, at the end of thy day,
O faithful shepherd! to come,
Bringing thy sheep in thy hand.
Therefore –इसलिये, faithful- वफादार।
कवि कहता है
क्योंकि उसके पिता के पास दैवीय गुण थे इसलिये उन्हें अन्य लोगों को बचाने का
कार्य सौपा गया। भगवान ने उसके पिता को कई
कमजोर लोगों को बचाने का कर्त्तव्य दिया था।
भगवान चाहते थे कि उसके पिता अपने साथ कमजोर और थके हुए लोगों को सही राह
पर लाएँ ओर उनका मार्गदर्शन करने के लिए उनका हाथ पकड़े। उसके पिता भगवान के दिए
हुए कार्य को बहुत ही अच्छी तरह से निभाते थे। वह अपने पिता को चरवाहे के रूप में
संदर्भित करता है क्योंकि यीशु मसीह खुद एक चरवाहे थे। कवि कहता है कि उसके पिता
भगवान के एक बहुत ही वफादार चरवाहे थे, जो कि शाम होते
ही अपने साथ उन सारी भेड़ो को (जो उसे सौंपी गई थीं) अपने मालिक के पास ले
आता है।
नोट - ईसाई धर्म की शुरुआत से ही पुजारियों को
चरवाहों ओर उनके चर्च के सदस्यों की भेड़ के झुंड के रूप में कल्पना की जाती है, जिन्हें चरवाहे देखते हैं।
The poet says that because his father had divine qualities, only then he was entrusted with the task of saving other people. God had given his father the duty of saving many weak people. God wanted his father to bring the weak and tired people with him to the right place and hold their hands to guide them. His father used to perform the work given by God very well. He refers to his father as the shepherd because Jesus Christ himself was a shepherd. The poet says that his father was a very faithful shepherd of God, who in the evening brings with him all the sheep (assigned to him) to his master.
Note
- From the beginning of Christianity, priests have been conceived of as
shepherds and members of their church as herds of sheep, watched by shepherds.
15.
And through thee I believe
In the noble and great who are gone;
Pure souls honour'd and blest
By former ages, who else—
Such, so soulless, so poor,
Is the race of men whom I see—
Seem'd but a dream of the heart,
Seem'd but a cry of desire.
Believe- विश्वास,
noble and great - सज्जन और महान, honour’d and blest- सम्मान और आशीर्वाद,
soulless- भावशून्य, -Seem’d- प्रतीत होता था
कवि अपने पिता
पर पूर्ण रूप से मुग्ध है। वह कहता है कि उसके पिता के अद्वितीय व्यक्तित्व, दैवीय गुणों और महानता के कारण ही उसे विश्वास हुआ है कि अतीत में , वास्तव में ही ऐसे व्यक्ति हुआ करते थे जो बहुत ही सज्जन और महान थे। वे
पवित्र आत्माएं सभी लोगो से सम्मान और आशीर्वाद प्राप्त करतीं थीं। अपने पिता के
उदाहरण के बिना,
वह उन महान लोगो के सच होने पर विश्वास करने के लिए तैयार
नहीं था। कवि को वर्तमान के मनुष्यों को देख कर उन महान नायको के होने पर अविश्वास
था। उनके बारे में सुन कर उसे लगता था कि क्या कभी ऐसे लोग भी हो सकते हैं। आजकल, अधिकांश पुरुष इतने भावशून्य, सद्गुणों में इतने
गरीब और दुर्भावनापूर्ण हैं कि उन महान नायकों पर विश्वास करना उनके लिए मुश्किल
था। लेकिन जब कवि ने अपने पिता को देखा, तो उन
महापुरुषों पर विश्वास करने लगा। पहले वह सोचा था कि महान व्यक्तियों की कहानियाँ दिल को बहलाने के लिए और सपने में ही सच होती हैं। उसे ऐसा प्रतीत होता था कि व्यक्ति ऐसे
महान पुरुषों की कल्पना करके अपने दिलों को सांत्वना देने की कोशिश करते हैं।
लेकिन अब उनका मानना है कि अतीत में ऐसे पुरुषों वास्तव में रहे होंगें।
The
poet is completely infatuated with his father. He says that it is because of
his father's unique personality, divine qualities, and greatness that has led
him to believe that in the past, there were indeed men who were very great and
courageous. Without his father's example, he was unwilling to believe those
great men to be true. The poet had disbelief in the existence of those great
heroes after seeing the present human beings. Hearing about them, he wondered
if there could ever be such people.
Nowadays, most men are so soulless, so poor in virtues and malicious that it was difficult for them to believe in those great heroes. But when the poet saw his father, he started believing in those great men. Earlier he thought that the stories of great men were just to entertain the heart and come true only in dreams. He realized that individuals try to comfort their hearts by imagining such great men. But now he believes such men may have been there in the past.
16.
Yes! I believe that there lived
Others like thee in the past,
Not like the men of the crowd
Who all round me to-day
Bluster or cringe, and make life
Hideous, and arid, and vile;
But souls temper'd with fire,
Fervent, heroic, and good,
Helpers and friends of mankind.
Crowd- भीड़, Bluster- डींग मारना, cringe-चापलूसी करना, Hideous- घृणित, arid- शुष्क, vile-वीभत्स, temper’d – संयमित, Fervent-जोश से भरा हुआ, mankind- मानव जाति।
कवि को अब तक
महान व्यक्तियों के अस्तित्व पर विश्वास हो चुका है। वह स्वीकार करता है-"हाँ, मुझे यकीन है"। कवि कहता है अतीत
में उसके पिता की तरह अन्य महान लोग भी हुआ करते थे जो सौम्य , बहादुर,
गुणी और मददगार थे; -जो अपने कमजोर
साथियों की मदद करते थे। वे महान लोग, मेरे आस पास
रहने वाले इन व्यक्तियों की तरह बिलकुल भी नहीं थे जो आजकल भीड़ के रूप में दिखाई
देते है। जो अपने मुर्खतापूर्ण व्यवहार, शेख़ीबाजी और डरपोकपन से जीवन को डरावना, बदसूरत और
क्षुद्र बना देते हैं। कवि उन व्यक्तियों की प्रशंसा करते हुए कहते है की वे वह
उच्च भावनाओं से भरे हुए उत्साही, बहादुर और अच्छा थे। वे मानव जाति के
सच्चे सहायक और मित्र थे।
The
poet has so far believed in the existence of great people. He accepts-
"Yes, I am sure". The poet says that in the past there were other
great people, like his father, who were gentle, brave, virtuous, and helpful;
Who used to help their weak comrades. Those great people were not like these
people who are, now, living around me. They were different from this crowd.
Those who make life scary, ugly, and petty with their foolish behavior,
boasting, and cowardice. The poet praises those individuals saying that they
were enthusiastic, brave, and good, full of high feelings. He was a true helper
and friend of mankind.
17.
Servants of God!—or sons
Shall I not call you? Because
Not as servants ye knew
Your Father's innermost mind,
His, who unwillingly sees
One of his little ones lost—
Yours is the praise, if mankind
Hath not as yet in its march
Fainted, and fallen, and died!
Unwillingly- न चाहते हुए भी, Fainted- बेहोश।
कवि कहता है कि
उसके पिता और उनके जैसे महान पुरुष भगवान की इच्छा के अनुसार एक सेवक की भाँति
कार्य करते हैं। लेकिन कवि प्रश्न करता है कि क्या उन्हें नौकरों के बजाय भगवान के
बेटें कह कर नहीं बुलाया जाना चाहिए। उसे लगता है कि ऐसे लोग भगवान के बच्चे हैं
उसके नौकर नहीं है; क्योंकि केवल एक पुत्र ही अपने पिता की दिल की बात को ज्यादा अच्छे से समझ
कर उसका पूर्ण रूप से पालन करेगा। नौकर
अपने स्वामी को जितना अच्छे से समझते हैं, पुत्र अपने
पिता को उससे कहीं अधिक अच्छे से समझते हैं । कवि कहता है कि भगवान तब दुखी होते
हैं, जब एक भी इंसान की आत्मा उन तक न पहुँच कर पाप के रास्ते में भटक कर खो जाती
है और उसे नरक भेज दिया जाता है। अपने पिता की प्रशंसा करते हुए, कवि कहता है कि उनके पिता सबसे अधिक प्रशंसा के पात्र हैं, क्योंकि उनकी सहायता के कारण ही उनके
दल के अन्य मनुष्यों ने अपनी स्वर्ग तक की
यात्रा को अधूरा नहीं छोड़ा। उसके पिता, सारा समय, उन सभी को पाप और पुण्य के बीच का अंतर अच्छी तरह से बताकर उन्हें जागरूक करते
रहे थे। इस कारण,
न ही तो वे बेहोश हुए, न ही वो थकान
के कारण गिर पड़े और न ही उन्होंने मृत्यु को प्राप्त किया। इस तरह उन्होंने अपनी
यात्रा को पूरा किया।
The
poet says that his father and great men like him act as servants according to
the will of the Lord. But the poet questions whether they should not be called
sons of God instead of servants. He feels that such people are God's children,
not His servants; because
Only
a son will understand his father's heart better and follow it completely. The
sons understand their father better than the servants understand their master.
The poet says that God is sad when the soul of a single human being does not
reach Him and gets lost in the path of sin and is sent to hell. Praising his
father, the poet says that his father deserves the most praise because it was
because of his help that the other men of his team completed their journey to
heaven. His father had been making them aware all the time by telling them well
the difference between sin and virtue. Because of this neither did they faint,
nor did they fall due to fatigue, nor did they die.
18.
See! In the rocks of the world
Marches the host of mankind,
A feeble, wavering line.
Where are they tending?—A God
Marshall'd them, gave them their goal.
Host- देखभाल करनेवाला,
feeble- कमजोर, wavering- डगमगाने वाला
, Marshall’d- क्रमबद्ध
करना
कवि कहता है कि
यह आसानी से देखा जा सकता है कि इस संसार की पथरीली चट्टानों के बीच से एक मानवता
का रखवाला अपने साथियों के समूह के साथ चला जा
रहा है। यह समूह चट्टानों से ढकी हुई भूमि से, एक पतली शक्तिहीन और अस्थिर रेखा के रूप में गुजर रहा है क्योंकि लंबी और कठिन
मार्ग के कारण समूह के सभी लोग कमजोर हो गये हैं। (कवि यहाँ पर पथरीनी भूमि को
संसार की कठिनाइयों के रूप में देख रहा है और बताता है कि किस तरह से संसार की
कठिनाइयों से परेशान हो कर मनुष्य अपने रास्ते से डगमगाने लगते है।) कवि को समझ नहीं आ रहा कि आखिर ये सभी कहाँ जा रहे
हैं।
जब भगवान लोगो
को इस तरह से दिशा विहिन हो कर चलते हुए
देखता है तो वह उन्हें एक सही मार्ग पर लाने के लिए उनको एक सीधी लाइन में लगता है
यानि उनका मार्गदर्शन करता है और उन्हें जीवन में एक लक्ष्य देता है जिससे वे अपने
जीवन को सुखमय बना सके।
The
poet says that it can be easily seen that a keeper of humanity is going along
with his group of companions through the stony rocks of this world. This group
is passing as a thin, powerless and unstable line through the land covered with
rocks because all the people of the group have become weak due to the long and
difficult path. (The poet is seeing the rocky land here as the difficulties of
the world and tells how human beings, being troubled by the difficulties of the
world, start staggering from their path.) The poet does not understand where
all these things are. are going.
When God sees people walking
like this aimless and directionless, He puts them in a straight line to bring
them on the right path i.e. guides them and gives them a goal in life, so that
they may make their life happy.
19.
Ah, but the way is so long!
Years they have been in the wild!
Sore thirst plagues them, the rocks
Rising all round, overawe;
Factions divide them, their host
Threatens to break, to dissolve.
Plagues- बीमार,
overawe-आतंकित
करना,
Factions –गुटबंदी, Threatens- धमकी
कवि को इस बात
का अहसास है कि मानव जीवन की यात्रा बहुत
लंबी है,
इसमें अनगिनत कठिनाइयाँ हैं और यह यात्रा बहुत ही दुर्गम
रास्तों से गुजरती है। अपने लक्ष्य यानि स्वर्ग तक पहुँचने से पहले
बहुत कुछ करना पड़ता है जैसे कि उन्हें इस संसार में रह कर सभी कठिनाइयों
(स्वास्थ्य सम्बन्धी,
मन सम्बन्धी एवं मस्तिष्क) का सामना करना पड़ता है। दूषित
वातावरण,
संक्रमण और प्यास उन्हें बीमार कर देती है। पहाड़ियाँ (कठिनाइयाँ
) उनके चारो और ऊँची दिवार बना लेती हैं जो उन्हें भयभीत करने लगती हैं।
परस्पर मतभेद
उन्हें एक दूसरे से अलग कर देते हैं। उनका मेजबान उन्हें तोड़ने और खत्म करने की
धमकी देता रहता है। अतः वे इस पवित्र स्थान तक पहुँचने की यात्रा को बीच में ही
छोड़ देते हैं क्योंकि उनके पास साहस और धैर्य नहीं हैं जो उन्हें अपने गंतव्य तक
पहुँचने में मदद कर सके।
The
poet realizes that the journey of human life is very long, it has innumerable
difficulties and this journey passes through very difficult paths. Before
reaching their goal i.e. heaven, they have to do a lot like living in this
world they have to face all the difficulties (related to health, heart, and
mind). Contaminated environment, infection, and thirst make them sick. The
hills (difficulties) build high walls around them which start to frighten them.
Mutual
differences separate them from each other. Their host keeps threatening to
break and destroy them. So they leave the journey to reach this holy place
midway because they do not have the courage and patience that can help them to
reach their destination.
20.
—Ah, keep, keep them combined!
Else, of the myriads who fill
That army, not one shall arrive;
Sole they shall stray; in the rocks
Stagger for ever in vain,
Die one by one in the waste.
Combined-
संयुक्त,
myriads- अनगिनत, stray- भटकना,
Stagger-
डगमगाना
दुःख एवं कठिनाइयों के अहसास से पीड़ित कवि
अपने पिता और उन्हीं के जैसे अन्य महान व्यक्तियों से पीड़ित मनुष्यों का
मार्गदर्शन करने की अपील करता है ताकि वे एक दूसरे से अलग न हों। यदि वे अलग हो
जाते हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति रास्ता खो देगा, पुण्य के जीवन को भूल जाएगा, और अनगिनत मनुष्यों से बनी
टोली में से कोई भी स्वर्ग तक नहीं पहुँच पाएगा। यदि वे अकेले हो
जाते हैं, तो प्रत्येक मनुष्य भटक कर अपना वास्तविक मार्ग खो देगा और डगमगाकर गलत
रास्ते की ओर बढ़ जायेगा। प्रत्येक मनुष्य इन चट्टानों (कठिनाइयों )के बीच खुद
को खो देंगा और
वे सभी क्षेत्र में एक-एक करके कठिनाइयों से जूझने के बाद मर जाएंगे।
नोट-
चट्टानों को मानव जीवन की समस्याओं का प्रतीक माना गया है।
The poet, suffering from the feeling of
sorrow and difficulties, appeals to his father and other great persons like him
to guide the suffering human beings so that they are not separated from each
other. If they separate, everyone will lose their way, forgetting a life of
virtue. Out of a group made up of countless human beings, none will reach
heaven. If they become alone, then every human being, astray, will lose his
true way and will stagger to the wrong path. Every human being will lose
himself amidst these rocks and all of them will die after battling difficulties
one by one in the field.
Then, in such hour of need
Of your fainting, dispirited race,
Ye, like angels, appear,
Radiant with ardour divine!
Beacons of hope, ye appear!
Languor is not in your heart,
Weakness is not in your word,
Weariness not on your brow.
Dispirited-उदासीन, race-जाति,
angels-स्वर्गदूत, Radiant-
प्रकाशमान,
ardour divine-दैवीय उत्साह , Beacons-प्रकाशस्तम्भ, Languor –थकान,
Weariness- सुस्ती।
कवि इस समय को बड़ा ही दुविधापूर्ण बताता है
क्योंकि ऐसे समय में समस्त मानव जाति बेहोश और उदास है। कवि अपने पिता और उन्ही के जैसे महान
व्यक्तियों की प्रशंसा करते हुए उन्हें भगवान के दूत कहता है जो कि ऊर्जा और
प्रकाश से भरपूर हैं। ऐसे समय में, वे एक स्वर्गदूत की तरह उभर कर आते हैं। वे
दैवीय उत्साह से प्रकाशमान हैं, और आशा के प्रकाशदीप की तरह प्रगट हुए हैं। उनमें
ईश्वरीय गुण हैं।
कवि अपने पिता के बारे में याद करके कहता है
कि उनके हृदय में थकान, शब्दों में कमजोरी और उनकी भृकुटि पर सुस्ती का नमो निशान
नहीं था। इसीलिए वे मनुष्य जाति के मार्गदर्शक
एवं मशाल वाहक के रूप में कार्य करते थे।वे थके हुए और एकाकी व्यक्तियों को
प्रेरित कर उन्हें उनके लक्ष्य (स्वर्ग ) तक पहुंचने में सहायता करते थे।
The
poet describes this time as very difficult because in such a time the whole
human race is unconscious and sad. The poet praises his father and great men
like him, calling him messengers of God who are full of energy and light. At
such times, he emerges as an angel. They are illumined by divine zeal and have
appeared like a beacon of hope. They have divine qualities.
The
poet remembers about his father and says that there was no trace of fatigue in
his heart, weakness in words, and lethargy on his forehead. That is why he
acted as the guide and torchbearer of mankind. He inspired the tired and lonely
people and helped them to reach their goal (heaven).
22.
Ye alight in our van! at your voice,
Panic, despair, flee away.
Ye move through the ranks, recall
The stragglers, refresh the outworn,
Praise, re-inspire the brave!
Order, courage, return.
Eyes rekindling, and prayers,
Follow your steps as ye go.
Ye fill up the gaps in our files,
Strengthen the wavering line,
Stablish, continue our march,
On, to the bound of the waste,
On, to the City of God.
Alight-
प्रकाशमय,
van –कारवाँ, Panic- भय,
despair –निराशा, flee - भाग
जाना,
stragglers- लक्ष्यहीन, outworn- थके हुए, Rekindling- फिर
से जगाना,
Strengthen- मजबूती देना , Stablish-
स्थापित करना।
कवि मानता है कि उसके पिता जैसे पुरुष आते
हैं और मनुष्यों को सही रास्ता दिखाने के लिए उनकी सेना (कारवाँ) के सामने खड़े हो
जाते हैं। उनकी आवाज से ही भय और निराशा
भाग खड़े होती हैं। कवि कहता है कि उनके
पिता स्वर्गदूत की तरह हैं जो एक साथ मार्च करते हुए इंसानों की लंबी लाइनों से
गुजरते हैं।भटकने वाले (लक्ष्यहीन) पुरुषों के लिए, उनके पिता एक मार्गदर्शक की
तरह होते हैं जो थके हुए मनुष्यों में ऊर्जा, आशा, सहानुभूति और साहस का संचार
करते हैं। वे भटके हुए को रास्ता दिखते हैं। वे बहादुरों की प्रशंसा करते हैं और
उनको फिर से प्रेरित करते हैं। इस तरह से भटके हुए व्यक्ति भी व्यवस्थित और साहसी
बन जाते हैं।एक बार फिर से उनकी आंखें अपने लक्ष्य को पाने के लिए खुल जाती हैं।
वे उसके पिता से प्रार्थना करते हैं और उनका अनुसरण करने लगते हैं।
वे सभी कवि के पिता से यह भी प्रार्थना करते
हैं कि वह उनके दल की पंक्तियों के बीच के स्थान को भर दें, कमजोर एवं भटकती हुई
पंक्ति को मजबूती देकर फिर से स्थापित करे और
यात्रा को आगे बढ़ाये। ताकि वे इस दुनिया की कठिनाइयों को पार करते हुए अपने
लक्ष्य (भगवान का घर-स्वर्ग) को प्राप्त कर सकें।
The
poet believes that men like his father come and stand before his army to show
the men the right path. Fear and despair run away from his voice. The poet says
that his father is like an angel passing through long lines of humans marching
together.
For
men who go astray, their father is like a guide who infuses energy, hope,
empathy, and courage in weary men. They show the way to the lost. He admires
the brave and inspires them again. In this way, even a stray person becomes
systematic and courageous. Once again, their eyes are opened to achieve their
goal. They pray to his father and start following him.
All
of them also pray to the poet's father to fill the gap between the lines of his
team, strengthen the weak and wandering line and restore it and carry on the
journey. So that they can achieve their goal (God's home-heaven) by overcoming
the difficulties of this world.