Monday, June 13, 2022

The Renunciation

 THE RENUNCIATION

त्याग



It was a night of full moon early in the month of Phalgun. The youthful spring was everywhere sending forth its breeze laden with the fragrance of mango-blossoms. The melodious notes of an untiring papiya, concealed within the thick foliage of an old lichi tree by the side of a tank, penetrated a sleepless bedroom of the Mukerji family. There Hemanta now restlessly twisted a lock of his wife's hair round his finger, now beat her bangles against her wristlet until it tinkled, now pulled at the chaplet of flowers about her head, and left it hanging over her face. His mood was that of an evening breeze which played about a favourite flowering shrub, gently shaking her now this side, now that, in the hope of rousing her to animation.

फाल्गुन मास की शुरुवात में पूर्णिमा की रात थी। युवा वसंत हर जगह आम-फूलों की सुगंध से लदी अपनी हवा भेज रहा था। एक तालाब के किनारे एक पुराने लीची के पेड़ के घने पत्ते के भीतर छिपे हुए, एक थकानरहित  पपीये  के मधुर स्वर, मुखर्जी परिवार के एक नीदरहित शयनकक्ष में घुस गए। जहाँ हेमंत ने बेचैनी से अपनी पत्नी के बालों की  एक लट अपनी उंगली के चारों ओर घुमाया, उसकी चूड़ी को उसकी कलाई पर तब तक हिलाया जब तक कि वे झनझना न जाए,  उसके सिर के चारों लिपटी फूलों की लड़ी को खींच लिया, और उसे अपने चेहरे पर लटका कर छोड़ दिया। उसका मूड एक शाम की हवा की तरह था जो एक पसंदीदा फूलों की झाड़ी से खेल रहा था, तथा, उत्साहित करने की उम्मीद से, उसे धीरे से कभी इस ओर तथा कभी उस ओर  हिला रहा था।

But Kusum sat motionless, looking out of the open window, with eyes immersed in the moonlit depth of never-ending space beyond. Her husband's caresses were lost on her.

At last Hemanta clasped both the hands of his wife, and, shaking them gently, said: "Kusum, where are you? A patient search through a big telescope would reveal you only as a small speck—you seem to have receded so far away. O, do come closer to me, dear. See how beautiful the night is."

Kusum turned her eyes from the void of space towards her husband, and said slowly: "I know a mantra, which could in one moment shatter this spring night and the moon into pieces."

लेकिन कुसुम निश्चल बैठी थी, खुली खिड़की से बाहर देख रही थी, उसकी आँखें कभी न खत्म होने वाली  चांदनी की गहराई में डूबी हुई थीं। उसके पति का दुलार उस पर बेअसर हो रहा  था।

अंत में, हेमंत ने अपनी पत्नी के दोनों हाथों को पकड़ लिया, और उन्हें धीरे से हिलाते हुए कहा: "कुसुम, तुम कहाँ हो? एक बड़ी दूरबीन के माध्यम से एक धैर्यपूर्ण खोज आपको केवल एक छोटे से कण के रूप में प्रकट करती है - ऐसा लगता है कि आप बहुत दूर जा चुके हैं। हे प्रिय, मेरे करीब तो आओ। देखो रात कितनी खूबसूरत है।"

कुसुम ने अंतरिक्ष के खालीपन से अपने पति की ओर देखा, और धीरे से कहा: "मुझे एक मंत्र पता है, जो एक पल में इस वसंत की रात और चाँद को टुकड़े-टुकड़े कर सकता है।"

"If you do," laughed Hemanta, "pray don't utter it. If any mantra of yours could bring three or four Saturdays during the week, and prolong the nights till 5 P. M. the next day, say it by all means."

Saying this, he tried to draw his wife a little closer to him. Kusum, freeing herself from the embrace, said: "Do you know, to-night I feel a longing to tell you what I promised to reveal only on my death-bed. To-night I feel that I could endure whatever punishment you might inflict on me."

"यदि तुम ऐसा कर सकती हो ," हेमंत हँसे, "मैं प्रार्थना  करता हूँ ऐसा मत करना।  यदि तुम्हारा कोई मंत्र सप्ताह के दौरान तीन या चार शनिवार ला सकता है, और रातों को अगले दिन शाम 5 बजे तक  बढ़ा सकता है, तो उस मन्त्र को जरूर बोलो।"

यह कहकर उसने अपनी पत्नी को थोड़ा अपने और करीब लाने की कोशिश की। कुसुम ने खुद को आलिंगन से मुक्त करते हुए कहा: "क्या आप जानते हैं, आज रात मैं आपको वह बताने की इच्छा  महसूस कर रही हूँ  जो मैंने केवल अपनी मृत्यु-शय्या पर प्रकट करने का वादा किया था। आज रात, मुझे लगता है कि तुम मुझे जो भी सजा दे दोगे, मैं उसे सहन कर करुँगी। 

Hemanta was on the point of making a jest about punishments by reciting a verse from Jayadeva, when the sound of an angry pair of slippers was heard approaching rapidly. They were the familiar footsteps of his father, Harihar Mukerji, and Hemanta, not knowing what it meant, was in a flutter of excitement.

Standing outside the door Harihar roared out: "Hemanta, turn your wife out of the house immediately."


हेमंत जयदेव के एक श्लोक का पाठ करके दिए जाने वाले दंड का मजाक बनाने के तैयार थे, तभी एक जोड़ी क्रोधित चप्पल की आवाज तेजी से उनकी ओर आती हुई सुनाई दी। वे उनके पिता, हरिहर मुखर्जी, के जाने-पहचाने पदचिन्ह थे, और हेमंत इन क्रोधित तेज पदचिन्हों के अर्थ से अनजान,  उत्सुकता की लहर में था। दरवाजे के बाहर खड़े हरिहर ने गरजते हुए कहा: "हेमंत, अपनी पत्नी को तुरंत घर से बाहर निकालो।"

Hemanta looked at his wife, and detected no trace of surprise in her features. She merely buried her face within the palms of her hands, and, with all the strength and intensity of her soul, wished that she could then and there melt into nothingness. It was the same papiya whose song floated into the room with the south breeze, and no one heard it. Endless are the beauties of the earth—but alas, how easily everything is twisted out of shape.

हेमंत ने अपनी पत्नी की ओर देखा, और उसके व्यवहार में आश्चर्य का कोई निशान नहीं पाया। उसकी पत्नी ने  केवल अपने हाथों की हथेलियों के भीतर अपना चेहरा दबा लिया, और अपनी आत्मा की सारी शक्ति और तीव्रता के साथ, कामना की कि वह उसी क्षण और वहीं के वहीं शून्य हो जाए। यह वही पपीया था जिसका गीत दक्षिण हवा के साथ कमरे में तैर रहा था, और किसी ने इसे नहीं सुना। पृथ्वी की सुंदरता अनंत हैं-लेकिन अफसोस, कितनी आसानी से सब कुछ कैसे बदल जाता है।

Returning from without, Hemanta asked his wife: "Is it true?"

"It is," replied Kusum.

"Why didn't you tell me long ago?" "I did try many a time, and I always failed. I am a wretched woman."

"Then tell me everything now."

Kusum gravely told her story in a firm unshaken voice. She waded barefooted through fire, as it were, with slow unflinching steps, and nobody knew how much she was scorched. Having heard her to the end, Hemanta rose and walked out.

बाहर से लौटते हुए हेमंत ने अपनी पत्नी से पूछा: "क्या यह सच है?"

"हाँ यह सच है," कुसुम ने उत्तर दिया।

"तुमने मुझे बहुत पहले क्यों नहीं बताया?" "मैंने कई बार कोशिश की, और मैं हमेशा असफल रही। मैं एक मनहूस महिला हूं।"

"तो अब मुझे सब कुछ बताओ।"

कुसुम ने दृढ़ निश्चयी स्वर में गम्भीरता से अपनी कहानी सुनाई। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह आग में नंगे पॉंव चल रही थी, धीमी गति से स्थिर कदमों के साथ, और कोई नहीं जानता था कि वह कितनी झुलसी हुई थी। उसकी बात अंत तक सुनकर हेमंत उठे और बाहर चले गए।

Kusum thought that her husband had gone, never to return to her again. It did not strike her as strange. She took it as naturally as any other incident of everyday life—so dry and apathetic had her mind become during the last few moments. Only the world and love seemed to her as a void and make-believe from beginning to end. Even the memory of the protestations of love, which her husband had made to her in days past, brought to her lips a dry, hard, joyless smile, like a sharp cruel knife which had cut through her heart. 

कुसुम ने सोचा कि उसका पति चला गया है, फिर कभी उसके पास नहीं लौटनइ के लिए  यह उसे अजीब नहीं लगा। उसने इसे स्वाभाविक रूप से रोजमर्रा की जिंदगी की किसी भी अन्य घटना के रूप में लिया - आखिरी कुछ क्षणों के दौरान उसका मन इतना शुष्क और उदासीन हो गया था। केवल, दुनिया और प्यार उसे शुरू से अंत तक  ही एक खालीपन और बनावटी लगता था। यहाँ  तक ​​कि पिछले दिनों उसके पति द्वारा प्यार के विरोध की स्मृति ने भी उसके होठों पर एक सूखी, कठोर, आनंदहीन मुस्कान ला दी, जो  एक तेज क्रूर चाकू की तरह थी जिसने उसके दिल को काट दिया था।

She was thinking, perhaps, that the love which seemed to fill so much of one's life, which brought in its train such fondness and depth of feeling, which made even the briefest separation so exquisitely painful and which made a moment's union so intensely sweet, which seemed boundless in its extent and eternal in its duration, the cessation of which could not be imagined even in births to come—that this was that love! So feeble was its support! No sooner does the priesthood touch it than your "eternal" love crumbles into a handful of dust!  Only a short while ago Hemanta had whispered to her: "What a beautiful night!"

वो सोच रही थी, शायद, कि प्यार किसी की ज़िंदगी को परिपूर्ण करने करने वाला प्रतीत होता था, जो यादों की श्रृंखला में  स्नेह और भावना की गहराई लेकर लाया, जिसने छोटी से छोटी जुदाई को भी इतना दर्दनाक बना दिया और जिसने  एक पल के मिलन को इतना मधुर बना देया, जो अपने विस्तार में असीम और अपनी अवधि में शाश्वत प्रतीत होता था, जिसके,आने वाले जन्मों में, समाप्त होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी - कि यह वह प्रेम था! इतना कमजोर था उसका सहारा! जैसे ही पौरोहित्य इसे छूता है आपका "शाश्वत" प्रेम मुट्ठी भर धूल में बिखर जाता है! थोड़ी देर पहले ही हेमंत ने उससे फुसफुसाया था: "कितनी सुंदर रात है!"


The same night was not yet at an end, the same papiya was still warbling, the same south breeze still blew into the room, making the bed-curtain shiver; the same moonlight lay on the bed next the open window, sleeping like a beautiful heroine exhausted with gaiety. All this was unreal! Love was more falsely dissembling than she herself!


वही रात अभी खत्म नहीं हुई थी, वही पपीया अब भी गा रहा था, वही दक्षिण हवा अभी भी कमरे में चल रही थी, बिस्तर और पर्दे को कंपा  रही थी; वही चांदनी खुली खिड़की के बगल में बिस्तर पर लेटी थी, और एक खूबसूरत नायिका की तरह सो रही थी जो आनंद से थक गई थी। यह सब असत्य था! प्यार झूठ बिखर रहा था उससे भी ज्यादा!

The next morning Hemanta, fagged after a sleepless night, and looking like one distracted, called at the house of Peari Sankar Ghosal. "What news, my son?" Peari Sankar greeted him. Hemanta, flaring up like a big fire, said in a trembling voice: "You have defiled our caste. You have brought destruction upon us. And you will have to pay for it." He could say no more; he felt choked.

अगली सुबह, अनिद्रा भरी रात की थकान, और व्याकुल हेमंत को , पेरी शंकर घोषाल के घर पर बुलाया। "क्या खबर है बेटा?" पेरी शंकर ने उनका अभिवादन किया। एक बड़ी आग की तरह भड़कते हुए, हेमंत ने काँपते हुए स्वर में कहा: "आपने हमारी जाति को अपवित्र किया है। आपने हमारा पर विनाश कर दिया।  और इसके लिए आपको भुगतना  करना होगा।" वह और नहीं कह सका; वह घुटन महसूस कर रहा था।

"And you have preserved my caste, prevented my ostracism from the community, and patted me on the back affectionately!" said Peari Sankar with a slight sarcastic smile. Hemanta wished that his Brahmin-fury could reduce Peari Sankar to ashes in a moment, but his rage burnt only himself. Peari Sankar sat before him unscathed, and in the best of health.

"और आपने मेरी जाति की रक्षा की है, समुदाय से मेरे बहिष्कार को रोका है, और मुझे प्यार से पीठ पर थपथपाया है!" पीरी शंकर ने हल्की व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ कहा। हेमंत की इच्छा थी कि उनका ब्राह्मण-क्रोध पल भर में पीरी शंकर को राख कर दे, लेकिन उसके  क्रोध ने  केवल उसे ही जलाया। परी शंकर उनके सामने बेदाग और स्वस्थ होकर बैठे थे।

"Did I ever do you any harm?" demanded Hemanta in a broken voice. "Let me ask you one question," said Peari Sankar." My daughter—my only child—what harm had she done your father? You were very young then, and probably never heard. Listen, then. Now, don't you excite yourself. There is much humour in what I am going to relate.

"क्या मैंने कभी तुम्हारा कोई नुकसान किया था ?" टूटी आवाज में हेमंत ने पूँछा। "मैं तुमसे एक सवाल पूछता हूँ," पेरी शंकर ने कहा। मेरी बेटी-मेरी इकलौती संतान-उसने तुम्हारे पिता का क्या बिगाड़ा था? तुम तब बहुत छोटे थे, और शायद कभी नहीं सुना। फिर सुनो। अब, अपने आपको उत्तेजित मत करना। मैं जो बताने जा रहा हूँ उसमें बहुत हास्य है।

"You were quite small when my son-in-law Nabakanta ran away to England after stealing my daughter's jewels. You might truly remember the commotion in the village when he returned as a barrister five years later. Or, perhaps, you were unaware of it, as you were at school in Calcutta at the time. Your father, arrogating to himself the headship of the community, declared that if I sent my daughter to her husband's home, I must renounce her for good, and never again allow her to cross my threshold. I fell at your father's feet, and implored him, saying: 'Brother, save me this once. I will make the boy swallow cow-dung, and go through the prayaschittam ceremony. Do take him back into caste.' 

"तुम काफी छोटे थे जब मेरा दामाद नवकांता मेरी बेटी के गहने चुराकर इंग्लैंड भाग गया। तुम्हे शायद याद हो पांच साल बाद जब वह बैरिस्टर के रूप में लौटा तो गॉंव में हलचल मच गई। या, शायद, तुम इस बात से अनजान थे, जैसा कि आप उस समय कलकत्ता में स्कूल में थे। आपके पिता ने घमंडपूर्वक अपने आप को समुदाय के मुखिया बताते हुए घोषित किया कि अगर मैंने अपनी बेटी को उसके पति के घर भेज दिया, तो मुझे उसे उसके अच्छे के लिए त्याग देना चाहिए, और उसे फिर कभी अपनी दहलीज पर नहीं आने देना चाहिए। मैं तुम्हारे पिता के चरणों में गिर गया, और उनसे यह कहते हुए विनती की: 'भाई, मुझे एक बार बचा लो। मैं लड़के को गाय का गोबर निगलवाऊँगा, और प्रायश्चितम समारोह करवाऊँगा। उसे वापस जाति में ले जाओ।'

But your father remained obdurate. For my part, I could not disown my only child, and, bidding good-bye to my village and my kinsmen, I betook myself to Calcutta. There, too, my troubles followed me. When I had made every arrangement for my nephew's marriage, your father stirred up the girl's people, and they broke the match off. Then I took a solemn vow that, if there was a drop of Brahmin blood flowing in my veins, I would avenge myself. You understand the business to some extent now, don't you? But wait a little longer. You will enjoy it, when I tell you the whole story; it is interesting.

लेकिन तुम्हारे पिता जिद्दी बने रहे। मैं अपनी इकलौती संतान को अस्वीकार नहीं कर सका और अपने गॉंव और अपने रिश्तेदारों को अलविदा कहकर मैं कलकत्ता चला गया। वहाँ भी, मेरी परेशानियाँ मेरे पीछे-पीछे चलीं। जब मैंने अपने भतीजे की शादी की पूरी व्यवस्था कर ली, तो तुम्हारे पिता ने लड़की वालों को उकसाया, और उन्होंने सम्बन्ध तोड़ लिया। तब मैंने संकल्प लिया कि यदि मेरी रगों में ब्राह्मण रक्त की एक बूंद भी बहेगी तो मैं अपना बदला लूंगा। कुछ हद तक तुम व्यापार को समझते हो ना? लेकिन थोड़ा और इंतजार कीजिए। जब मैं आपको पूरी कहानी सुनाऊँगा  तो आपको मजा आएगा; यह दिलचस्प है।

"When you were attending college, one Bipradas Chatterji used to live next door to your lodgings. The poor fellow is dead now. In his house lived a child-widow called Kusum, the destitute orphan of a Kayestha gentleman. The girl was very pretty, and the old Brahmin desired to shield her from the hungry gaze of college students. But for a young girl to throw dust in the eyes of her old guardian was not at all a difficult task. She often went to the top of the roof, to hang her washing out to dry, and, I believe, you found your own roof best suited for your studies. Whether you two spoke to each other, when on your respective roofs, I cannot tell, but the girl's behaviour excited suspicion in the old man's mind. She made frequent mistakes in her household duties, and, like Parbati,[3] engaged in her devotions, began gradually to renounce food and sleep. Some evenings she would burst into tears in the presence of the old gentleman, without any apparent reason.

"जब तुम कॉलेज जा रहे थे, एक बिप्रदास चटर्जी तुम्हारे आवास के बगल में रहते थे। बेचारा अब मर चुका है। उसके घर में, एक कायस्थ सज्जन की बेसहारा अनाथ बाल-विधवा बेटी, कुसुम, रहती थी। लड़की बहुत सुंदर थी और बूढ़ा ब्राह्मण उसे कॉलेज के छात्रों की भूखी निगाहों से बचाना चाहता था। लेकिन एक युवा लड़की के लिए अपने बूढ़े अभिभावक की आँखों में धूल झोंकना कोई मुश्किल काम नहीं था। वह अक्सर छत ऊपर जाती थी, उनके धुलाई के कपड़े को सुखाने के लिए, और, मुझे विश्वास है, तुम ने अपनी खुद की छत को अपनी पढ़ाई के लिए सबसे उपयुक्त पाया। आप दोनों ने एक-दूसरे से बात की, अपनी-अपनी छतों पर कब, मैं नहीं बता सकता, लेकिन लड़की के व्यवहार ने बूढ़े आदमी के मन के संदेह को बढ़ा दिया । उसने अपने घर के कर्तव्यों में बार-बार गलतियाँ कीं, और, पार्वती की तरह, अपनी भक्ति में लगी हुई, धीरे-धीरे भोजन और नींद को त्यागने लगी। कुछ शामें वह बूढ़े सज्जन की उपस्थिति में फूट-फूट कर रोने लगी, बिना कोई स्पष्ट कारण।

"At last he discovered that you two saw each other from the roofs pretty frequently, arid that you even went the length of absenting yourself from college to sit on the roof at mid-day with a book in your hand, so fond had you grown suddenly of solitary study. Bipradas came to me for advice, and told me everything. 'Uncle,' said I to him, 'or a long while you have cherished a desire to go on a pilgrimage to Benares. You had better do it now, and leave the girl in my charge. I will take care of her.'

"आखिरकार उसने पाया कि आप दोनों ने एक-दूसरे को छतों से बहुत बार देखा, और यह कि आप अपने हाथों में एक किताब के साथ मध्याह्न में छत पर बैठने के लिए कॉलेज से अनुपस्थित रहने लगे, आप अचानक एकान्त अध्ययन के इतने शौकीन हो गए थे । बिप्रदास मेरे पास सलाह के लिए आए, और मुझे सब कुछ बताया। 'चाचा,' मैंने उनसे कहा, 'लंबे समय से आप बनारस की तीर्थ यात्रा पर जाने की इच्छा रखते हैं। बेहतर है कि आप इसे अभी करें, और लड़की को मेरे हाथ में छोड़ दो। मैं उसकी देखभाल करूँगा।'

"So he went. I lodged the girl in the house of Sripati Chatterji, passing him off as her father. What happened next is known to you. I feel a great relief to-day, having told you everything from the beginning. It sounds like a romance, doesn't it? I think of turning it into a book, and getting it printed. But I am not a writing-man myself. They say my nephew has some aptitude that way—I will get him to write it for me. But the best thing would be, if you would collaborate with him, because the conclusion of the story is not known to me so well." Without paying much attention to the concluding remarks of Peari Sankar, Hemanta asked: "Did not Kusum object to this marriage?"

"तो वह चला गया। मैंने लड़की को श्रीपति चटर्जी के घर में रखा, उसे उसके पिता के रूप में पारित कर दिया। आगे जो हुआ वह आपको पता है। मैं आज एक बड़ी राहत महसूस कर रहा हूँ, जो आपको शुरू से ही सब कुछ बता रहा है। ऐसा लगता है एक रोमांस की तरह है, है ना? मैं इसे एक किताब में बदलने और इसे मुद्रित करने के बारे में सोचता हूँ। लेकिन मैं खुद एक लेखक नहीं हूँ। वे कहते हैं कि मेरे भतीजे में कुछ योग्यता है- मैं उसे इसे मेरे लिए लिखने के लिए कहूँगा।  लेकिन सबसे अच्छी बात यह होगी कि आप उनके साथ सहयोग करेंगे, क्योंकि कहानी का निष्कर्ष मुझे इतनी अच्छी तरह से नहीं पता है।" पीरी शंकर की समापन टिप्पणी पर अधिक ध्यान दिए बिना, हेमंत ने पूछा: "क्या कुसुम को इस विवाह पर आपत्ति नहीं थी?"

"Well," said Peari Sankar, "it is very difficult to guess. You know, my boy, how women's minds are constituted. When they say  no,' they mean 'yes.' During the first few days after her removal to the new home, she went almost crazy at not seeing you. You, too, seemed to have discovered her new address somehow, as you used to lose your way after starting for college, and loiter about in front of Sripati's house. Your eyes did not appear to be exactly in search of the Presidency College, as they were directed towards the barred windows of a private house, through which nothing but insects and the hearts of moon-struck young men could obtain access. I felt very sorry for you both. I could see that your studies were being seriously interrupted, and that the plight of the girl was pitiable also.

"शायद," पेरी शंकर ने कहा, "यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है। तुम  जानते हो,  महिलाओं के दिमाग कैसे बनते हैं। जब वे मना करती हैं तो उनका मतलब होता है 'हाँ।' नए घर में जाने के बाद पहले कुछ दिनों के दौरान, वह आपको न देखकर लगभग पागल हो गई थी। ऐसा लगता है कि तुमने  भी किसी तरह उसका नया पता खोज लिया था , क्योंकि आप कॉलेज का लिया जाने के बाद अपना रास्ता खो देते थे, और इधर-उधर भटकते थे श्रीपति के घर के सामने।आपकी आँखें प्रेसीडेंसी कॉलेज की तलाश में बिल्कुल नहीं लग रही थीं, क्योंकि वे कीड़े और चाँद को पाने की इच्छा रखने वाले युवकों के दिल के आलावा कोई और नहीं पहुँच सकता।  मुझे आप दोनों पर बहुत अफ़सोस हुआ। मैंने देखा कि आपकी पढ़ाई गंभीर रूप से बाधित हो रही थी, और लड़की की दुर्दशा भी दयनीय थी।

"One day I called Kusum to me, and said: 'Listen to me, my daughter. I am an old man, and you need feel no delicacy in my presence. I know whom you desire at heart. The young man's condition is hopeless too. I wish I could bring about your union.' At this Kusum suddenly melted into tears, and ran away. On several evenings after that, I visited Sripati's house, and, calling Kusum to me, discussed with her matters relating to you, and so I succeeded in gradually overcoming her shyness. At last, when I said that I would try to bring about a marriage, she asked me: ' How can it be?' 'Never mind,' I said, 'I would pass you off as a Brahmin maiden.' After a good deal of argument, she begged me to find out whether you would approve of it. 'What nonsense,' replied I, ' the boy is well-nigh mad as it were, what's the use of disclosing all these complications to him? Let the ceremony be over smoothly and then—all's well that ends well. Especially, as there is not the slightest risk of its ever leaking out, why go out of the way to make a fellow miserable for life?'

"एक दिन मैंने कुसुम को अपने पास बुलाया, और कहा: 'मेरी बात सुनो, मेरी बेटी। मैं एक बूढ़ा आदमी हूँ, और तुम्हें मेरी उपस्थिति में कोई संवेदनशीलता महसूस करने की ज़रूरत नहीं है। मैं जानता हूँ कि तुम किसको दिल से चाहती  हो। युवक की हालत भी निराशाजनक है। काश मैं तुम्हारा मिलन करा पाता।' इस पर कुसुम अचानक आंसुओं में बह गई और भाग गई। उसके बाद कई शामों को, मैंने श्रीपति के घर का दौरा किया, और कुसुम को अपने पास बुलाकर उससे संबंधित मामलों पर चर्चा की, और इसलिए मैं धीरे-धीरे उनकी शर्म पर काबू पाने में सफल रहा । अंत में, जब मैंने कहा कि मैं शादी कराने की कोशिश करुँगा, तो उसने मुझसे पूछा: 'यह कैसे हो सकता है?' 'कोई बात नहीं,' मैंने कहा, 'मैं तुम्हें एक ब्राह्मण युवती के रूप में प्रचारित करूँगा।' काफी बहस के बाद, उसने मुझसे यह पता लगाने के लिए भीख माँगी कि क्या आप इसे स्वीकार करेंगे। 'क्या बकवास है,' मैंने जवाब दिया, 'लड़का बिलकुल पागल है, उसे इन सभी जटिलताओं का खुलासा करने का क्या फायदा है ? समारोह को सुचारू रूप से समाप्त होने दो और अंत भला तो सब भला। विशेष रूप से, चूंकि इस बात के खुलने का कभी भी थोड़ा सा भी जोखिम नहीं है, तो फिर एक साथी को जीवन भर  के लिए दुखी करने का क्या लाभ?'

"I do not know whether the plan had Kusum's assent or not. At times she wept, and at other times she remained silent. If I said, 'Let us drop it then,' she would become very restless. When things were in this state, I sent Sripati to you with the proposal of marriage; you consented without a moment's hesitation. Everything was settled. "Shortly before the day fixed, Kusum became so obstinate that I had the greatest difficulty in bringing her round again. 'Do let it drop, uncle,' she said to me constantly. 'What do you mean, you silly child,' I rebuked her, 'how can we back out now, when everything has been settled?'

"मुझे नहीं पता कि योजना पर कुसुम की सहमति थी या नहीं। कभी रोती थी, और कभी चुप रहती थी। अगर मैंने कहा, 'चलो इसे छोड़ दें,' तो वह बहुत बेचैन हो जाएगी। जब चीजें इस स्थिति में थीं, मैंने शादी के प्रस्ताव के साथ श्रीपति को आपके पास भेजा, आपने एक पल की हिचकिचाहट के बिना सहमति व्यक्त की। सब कुछ तय हो गया। "दिन तय होने से कुछ समय पहले, कुसुम इतनी जिद्दी हो गई कि मुझे उसे फिर मानाने में सबसे बड़ी कठिनाई हुई। 'इसे समाप्त हो जाने दो, चाचा,' उसने मुझसे लगातार कहा। 'तुम्हारा क्या मतलब है, मूर्ख बच्चे,' मैंने उसे फटकार लगाई, 'अब हम कैसे पीछे हट सकते हैं, जब सब कुछ ठीक हो गया है?'

"'Spread a rumour that I am dead,' she implored. 'Send me away somewhere.' 'I What would happen to the young man then?' said I. ' He is now in the seventh heaven of delight, expecting that his long cherished desire would be fulfilled to-morrow; and to-day you want me to send him the news of your death. The result would be that to-morrow I should have to bear the news of his death to you, and the same evening your death would be reported to me. 

"'अफवाह फैलाओ कि मैं मर चुकी हूँ,' उसने याचना की। 'मुझे कहीं दूर भेज दो।' 'तो उस युवक का क्या होगा?' मैंने कहा। ' वह अब खुशी के सातवें आसमान में है, उम्मीद कर रहा है कि उसकी लंबे समय से पोषित इच्छा कल पूरी होगी; और आज तुम चाहती  हो कि मैं उसे तुम्हारी मृत्यु की खबर भेजूँ । परिणाम यह होगा कि- कल मुझे उसकी मृत्यु का समाचार तुम्हें देना होगा, और उसी शाम को तुम्हारी मृत्यु की सूचना मुझे दी जाएँगी। 

Do you imagine, child, that I am capable of committing a girl-murder and a Brahmin-murder at my age?' "Eventually the happy marriage was celebrated at the auspicious moment, and I felt relieved of a burdensome duty which I owed to myself. What happened afterwards you know best." "Couldn't you stop after having done us an irreparable injury?" burst out Hemanta after a short silence. "Why have you told the secret now?"

क्या तुम कल्पना कर सकती हो, बच्चे, कि मैं अपनी उम्र में एक लड़की की हत्या और एक ब्राह्मण-हत्या करने में सक्षम हूँ?' "आखिरकार सुखी विवाह शुभ क्षण में मनाया गया, और मैं  एक बोझिल कर्तव्य से मुक्त महसूस हुआ, जो मेरा अपने आप पर बकाया था। बाद में क्या हुआ आप सबसे अच्छी तरह जानते हैं।" "हमें अपूरणीय क्षति पहुँचाने के बाद क्या आप रुक नहीं सकते?" थोड़ी चुप्पी के बाद हेमंत का गुस्सा फूटा। । "आपने यह रहस्य अभी क्यों बताया है?"


With the utmost composure, Peari Sankar replied: "When I saw that all arrangements had been made for the wedding of your sister, I said to myself: 'Well, I have fouled the caste of one Brahmin, but that was only from a sense of duty. Here, another Brahmin's caste is imperilled, and this time it is my plain duty to prevent it.' So I wrote to them saying that I was in a position to prove that you had taken the daughter of a sudra to wife."

परी शंकर ने अत्यंत संयम के साथ उत्तर दिया: "जब मैंने देखा कि आपकी बहन की शादी के लिए सभी व्यवस्थाएं हो चुकी हैं, तो मैंने खुद से कहा: 'ठीक है, मैंने एक ब्राह्मण की जाति को खराब कर दिया है, लेकिन यह केवल एक कर्तव्य की भावना से था। यहाँ, एक और ब्राह्मण की जाति संकट में है, और इस बार इसे रोकना मेरा कर्तव्य है।' इसलिए मैंने उन्हें यह कहते हुए लिखा कि मैं यह साबित कर सकता था तुमने  एक शूद्र की बेटी को पत्नी बना चुके थे।"

Controlling himself with a gigantic effort, Hemanta said: "What will become of this girl whom I shall abandon now? Would you give her food and shelter?" "I have done what was mine to do," replied Peari Sankar calmly. "It is no part of my duty to look after the discarded wives of other people. Anybody there? Get a glass of cocoanut milk for Hemanta Babu with ice in it. And some pan too." Hemanta rose, and took his departure without waiting for this luxurious hospitality.

एक बड़े प्रयास से खुद को नियंत्रित करते हुए, हेमंत ने कहा: "इस लड़की का क्या होगा जिसे मैं अब छोड़ दूंगा? क्या आप उसे भोजन और आश्रय देंगे?" "मैंने वही किया है जो मुझे करना था," पेरी शंकर ने शांति से उत्तर दिया। "अन्य लोगों की परित्यक्त पत्नियों की देखभाल करना मेरे कर्तव्य का हिस्सा नहीं है। क्या वहाँ कोई है? हेमंत बाबू के लिए बर्फ के साथ एक गिलास नारियल का दूध लेकर आये । और कुछ बर्तन  भी।" हेमंत उठे, और इस शानदार आतिथ्य की प्रतीक्षा किए बिना विदा हो गए।

It was the fifth night of the waning of the moon—and the night was dark. No birds were singing. The lichi tree by the tank looked like a smudge of ink on a background a shade less deep. The south wind was blindly roaming about in the darkness like a sleep-walker. The stars in the sky with vigilant unblinking eyes were trying to penetrate the darkness, in their effort to fathom some profound mystery.

चाँद के अस्त होने की पाँचवीं रात थी—और रात अँधेरी थी। कोई पक्षी नहीं गा रहा था। टैंक के पास लीची का पेड़ स्याही की एक धुंध की तरह लग रहा था, जिसकी पृष्ठभूमि छाया कम गहरी थी। दक्षिण की हवा नींद में चलने वाले की तरह अंधेरे में आँख  मूंदकर घूम रही थी। आकाश में तारे सतर्क, बिना पलक झपकाए किसी गहरे रहस्य की थाह लेने के प्रयास में, अंधेरे में घुसने की कोशिश कर रहे थे।

No light shone in the bedroom. Hemanta was sitting on the side of the bed next the open window, gazing at the darkness in front of him. Kusum lay on the floor, clasping her husband's feet with both her arms, and her face resting on them. Time stood like an ocean hushed into stillness. On the background of eternal night, Fate seemed to have painted this one single picture for all time—annihilation on every side, the judge in the centre of it, and the guilty one at his feet.

बेडरूम में रोशनी नहीं थी। हेमंत खुली खिड़की के पास पलंग के किनारे बैठे अपने सामने के अँधेरे को देख रहा था। कुसुम फर्श पर लेट गई, अपने पति के पैरों को दोनों हाथों से पकड़ लिया, और उसने अपना चेहरा उन पर टिका लिया। समय एक महासागर की तरह खड़ा था जो शांति में डूबा हुआ था। अनन्त रात की पृष्ठभूमि पर, ऐसा लगता है कि भाग्य ने इस एक ही तस्वीर को हमेशा के लिए चित्रित किया है - हर तरफ विनाश, इसके केंद्र में न्यायाधीश, और उसके चरणों में दोषी।

The sound of slippers was heard again. Approaching the door, Harihar Mukerji said: "You have had enough time,—I can't allow you more. Turn the girl out of the house." Kusum, as she heard this, embraced her husband's feet with all the ardour of a lifetime, covered them with kisses, and touching her forehead to them reverentially, withdrew herself. Hemanta rose, and walking to the door, said: "Father, I won't forsake my wife." "What!" roared out Harihar, "would you lose your caste, sir?" "I don't care for caste," was Hemanta's calm reply. "Then you too I renounce."

चप्पल की आवाज फिर सुनाई दी। दरवाजे के पास पहुँचते हुए, हरिहर मुखर्जी ने कहा: "तुमने पर्याप्त समय ले लिया है, - मैं तुम्हें और अनुमति नहीं दे सकता। लड़की को घर से बाहर निकालो।" यह सुनते ही कुसुम ने अपने पति के चरणों को जीवन भर के जोश के साथ गले लगा लिया, उन्हें चुंबन से ढँक दिया, और श्रद्धापूर्वक अपने  माथे को उसके पैरों से छूकर, खुद को वापस ले लिया। हेमंत उठे, और दरवाजे की ओर चलते हुए कहा: "पिताजी, मैं अपनी पत्नी को नहीं छोड़ूंगा।" "क्या!" हरिहर ने दहाड़ते हुए कहा, "सर, क्या आप अपनी जाति खो देंगे?" हेमंत का शांत उत्तर था, "मुझे जाति की परवाह नहीं है।" "तो  मैं तुम्हारा भी त्याग करता हूँ।"

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